बहुविकल्पीय प्रश्न
नीचे दो गद्यांश दिए गए हैं। किसी एक गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर
दीजिए।(1×5=5)
संस्कृतियों के निर्माण में एक सीमा तक देश और जाति का योगदान रहता है। संस्कृति के मूल उपादान तो प्रायः सभी सुसंस्कृत
और सभ्य देशों में एक सीमा तकसमान रहते हैं, किंतुबाह्य उपादानों में अंतर अवश्य आता है। राष्ट्रीय या जातीय संस्कृति का सबसे
बड़ा योगदान यही है कि वह अपने राष्ट्र की परंपरा से संपृक्त बनाती है, अपनी रीति-नीति की संपदा से विच्छिन्न नहीं होने देती।
आज के युग में राष्ट्रीय एवं जातीय संस्कृतियों के मिलन के अवसर सुलभ हो गए हैं, संस्कृतियों का पारस्परिक संघर्ष भी शुरू हो
गया है। कुछ ऐसे विदेशी प्रभाव हमारे देश पर पड़ रहे हैं, जिनके आतंक ने हमें अपनी संस्कृति के प्रति संशयालु बना दिया है। हमारी
आस्था डिगने लगी है। यह हमारी वैचारिक दुर्बलता का फल है।
अपनी संस्कृति को छोड़, विदेशी संस्कृति के विवेकहीन अनुकरण से हमारे राष्ट्रीय गौरव को ठेस पहुँच रही, वह किसी राष्ट्रप्रेमी
जागरूक व्यक्ति से छिपी नहीं है। भारतीय संस्कृति में त्याग और ग्रहण की अद्भुत क्षमता रही है। अत: आज के वैज्ञानिक युग में हम
केसी भी विदेशी संस्कृति के जीवन तत्वों को ग्रहण करने में पीछे नहीं रहना चाहेंगे, किंतु अपनी सांस्कृतिक निधि की उपेक्षा
करके नहीं। यह परावलंबन राष्ट्र की गरिमा के अनुरूप नहीं है। यह स्मरण रखना चाहिए कि सूर्य की आलोकप्रदायिनी किरणों से
धेिकोचाहे जितनी जीवन शक्ति मिले किन्तु अपनी जमीन और अपनी जड़ों के बिना कोई पौधा जीवित नहीं रह सकता। अविवेकी
नुकरण अज्ञान काही पर्याय है।
(क) आधुनिक युग में संस्कृतियों में परस्पर संघर्ष प्रारंभ होने का प्रमुख कारण बताइए।
(1) अनेक संस्कृतियों के मिलन से अतिक्रमण (ii) बाह्य उपादान में अंतर
(iii) आस्था का डिगना
(iv) वैचारिक दुर्बलता
(ख) अविवेकी अनुकरण किसका पर्याय है?
(i) अज्ञानता का
(ii) साक्षरता का
(iii) ज्ञान का
(iv) संस्कृति का
(ग) संस्कृति के निर्माण में किसका योगदान है?
(i) केवल जातिका (ii) केवल देश का
(iii) जाति और देश का (iv) इनमें कोई नहीं
(घ) हम अपनी सांस्कृतिक संपदा की उपेक्षा क्यों नहीं कर सकते ?
(i) क्योंकि यह हमारी संस्कृति है
(ii) क्योंकि यह राष्ट्र की गरिमा के अनुरूप नहीं है
Answer:
wwgwjieeieuddHkdcnmllwv. ebbuevvxhii3vvmsb d bidy3gcjwoef3 msvxGjsut