बिछड़ के तुम से ज़िंदगी सज़ा लगती है,यह साँस भी जैसे मुझ से ख़फ़ा लगती है,तड़प उठता हूँ “दर्द” के मारे…ज़ख्मों को जब तेरे शहर की हवा लगती है,अगर उम्मीद-ए-वफ़ा करूँ तो किस से करूँ,मुझको तो मेरी ज़िंदगी भी बेवफ़ा लगती है। Alone About the author Autumn
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